Jevik khete

jewek kheti ke bare jankari

धान की फसल के लिए जैविक उर्वरकों का उपयोग निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है:

  1. गोबर की खाद (कम्पोस्ट):

    • गोबर की खाद का उपयोग मिट्टी की संरचना और उर्वरता बढ़ाने के लिए करें। 5-10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से इसे खेत में मिलाएं।
  2. वर्मी कम्पोस्ट:

    • वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद) का उपयोग पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए करें। 2-3 टन प्रति हेक्टेयर की दर से इसे खेत में मिलाएं।
  3. हरी खाद:

    • हरी खाद जैसे ढेंचा, सनई, या मूंग को मुख्य फसल से पहले बोकर, उन्हें फूल आने पर खेत में मिलाएं। यह विधि मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है।
  4. नीम की खली:

    • नीम की खली का उपयोग न केवल उर्वरक के रूप में बल्कि कीटों से बचाव के लिए भी करें। 200-300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इसे खेत में मिलाएं।
  5. पंचगव्य:

    • पंचगव्य का उपयोग पौधों की वृद्धि और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए करें। इसे बनाने के लिए गोमूत्र, गोबर, दूध, दही और घी को मिलाकर तैयार करें। 3-5% घोल बनाकर इसका छिड़काव करें।
  6. जैव उर्वरक:

    • नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की पूर्ति के लिए जैव उर्वरकों का उपयोग करें। जैसे राइजोबियम, एजोटोबैक्टर और पीएसबी (फास्फेट सोल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया)।
  7. फसल अवशेष:

    • फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन्हें खेत में मिलाकर जैविक खाद बनाएं। यह मिट्टी की संरचना और उर्वरता को बढ़ाता है।
  8. फोलियर स्प्रे (पत्तों पर छिड़काव):

    • जैविक पोषक तत्वों का फोलियर स्प्रे बनाकर पत्तों पर छिड़कें। नीम का तेल, फिश एमल्शन और समुद्री शैवाल का घोल उपयोगी होते हैं।

इन जैविक उर्वरकों का उपयोग करके, धान की फसल को स्वस्थ और उर्वर बनाकर बेहतर उपज प्राप्त की जा सकती है।
धान की फसल में जैविक विधियों से कीट एवं रोग नियंत्रण के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:

कीट नियंत्रण:

  1. नीम का तेल:

    • नीम के तेल का छिड़काव कीटों से बचाव के लिए करें। 5% नीम का तेल 2-3 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कें।
  2. ट्राइकोग्रामा (Trichogramma) का उपयोग:

    • यह मित्र कीट अंडों में परजीवी की तरह काम करता है और कीटों की संख्या को नियंत्रित करता है। 1-2 लाख ट्राइकोग्रामा प्रति हेक्टेयर का उपयोग करें।
  3. लाइट ट्रैप:

    • रात में कीटों को आकर्षित करने और पकड़ने के लिए लाइट ट्रैप का उपयोग करें।
  4. बायो-पेस्टीसाइड:

    • जैविक कीटनाशकों जैसे बैसिलस थुरिंजियेंसिस (Bacillus thuringiensis) और बीवेरिया बैसियाना (Beauveria bassiana) का उपयोग करें।

रोग नियंत्रण:

  1. फसल अवशेष प्रबंधन:

    • फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन्हें कम्पोस्ट बनाकर खेत में मिलाएं।
  2. फसल चक्र:

    • फसल चक्र अपनाकर मिट्टी की उर्वरता बनाए रखें और रोगों के प्रकोप को कम करें।
  3. बायो-कंट्रोल एजेंट:

    • ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) का उपयोग फंगल रोगों से बचाव के लिए करें। 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति हेक्टेयर का उपयोग करें।
  4. सफेद बैक वायरस:

    • इस वायरस से बचाव के लिए संक्रमित पौधों को तुरंत हटा दें और नष्ट करें। साथ ही, पौधों को स्वस्थ रखने के लिए जैविक पोषक तत्वों का प्रयोग करें।
  5. फसल की निगरानी:

    • नियमित रूप से फसल की निगरानी करें और शुरुआती लक्षण दिखते ही जैविक उपचार करें।

अतिरिक्त सुझाव:

  • संतुलित पोषण:

    • पौधों को संतुलित पोषण दें ताकि वे स्वस्थ और रोग प्रतिरोधी बने रहें।
  • स्वच्छता बनाए रखें:

    • खेतों को साफ-सुथरा रखें और फसल के अवशेषों को नियमित रूप से हटाएं।

इन जैविक विधियों को अपनाकर, धान की फसल में कीटों और रोगों का प्रभावी ढंग से नियंत्रण किया जा सकता है।